पराली से प्रदुषण नहीं अब बढ़ेगी उर्वरकता

पंजाब में मोहाली के किसानों ने प्रदुषण का कारण बनने वाली पराली (यानी फसल अवशेष or Crop residue or stubble) को ही उर्वरकता एवं उपज बढ़ाने का साधन बना लिया है। किसानों ने पराली के अवशेष को मिट्टी के साथ मिश्रित करके भूमि की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने में सहयोगी होने की बात कही है। हालाँकि, यह सच है कि पराली के अवशेष को मृदा में मिलाने से भूमि की उत्पादन क्षमता निश्चित रूप से बढ़ती है, इसी के अनुरूप किसान भी पराली के अवशेष से मृदा को अधिक उपजाऊ और उर्वरकों के व्यय को कम करना चाहते हैं। किसानों की यह पहल प्रदूषण को नियंत्रण में करने के लिए काफी हद तक सहायक होगी।


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सभी राज्यों की राज्य सरकार खरीफ की फसल के समय पराली से होने वाले प्रदूषण को लेकर चिंता में रहती हैं, क्योंकि किसान धान की फसल की कटाई पिटाई के उपरांत शेष बचे फसल अवशेषों को आग लगा देते हैं, जो वातावरण प्रदूषित करने में अहम भूमिका निभाता है। इसकी रोकथाम के लिए सरकार हर संभव प्रयास भी करती है, जैसे पराली से सम्बंधित कृषि उपकरणों पर अनुदान देना, बायो डिकम्पोज़र का छिड़काव एवं पराली जलाने वालों को रोकने के लिए कानूनी सहायता से उनके विरुद्ध कार्यवाही का भी प्रावधान किया है। लेकिन इन सब इंतेज़ाम के बावजूद भी किसानों द्वारा पराली जलाई जाती है। पंजाब के किसानों ने प्रदुषण को कम करने के लिए पराली के अवशेष को ही उर्वरक के रूप में चुना है जो बेहद सराहनीय है।


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उर्वरकों के खर्च में कितनी कमी आयेगी

जब मृदा की उर्वरक क्षमता में वृद्धि आएगी तो निश्चित रूप से अन्य उर्वरकों की आवश्यकता में कमी होगी, जिससे प्रत्यक्ष रूप से लागत में कमी एवं पराली के अवशेष का सही उपयोग होगा, परिणामस्वरूप प्रदुषण से काफी हद तक राहत मिलेगी। पंजाब के किसानों ने उर्वरकों की खपत कम करने के लिए इस प्रकार की अद्भुत पहल की है। पराली के अवशेष को मिट्टी में मिलाकर किसान मृदा की शक्ति को बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं, जिससे आगामी फसल में उनको बिना किसी अतिरिक्त व्यय के बेहतर उत्पादन प्राप्त हो सके। पंजाब में मोहाली जनपद के बदरपुर गाँव निवासी भूपेंद्र नामक किसान, ३० एकड़ जमीन पर आधुनिक कृषि उपकरणों का प्रयोग करके पराली के अवशेष को मिट्टी में मिला देता है, जो समयानुसार सड़ने के बाद उर्वरकों का कार्य करती है।


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आखिर किसान इतने प्रतिबंधों के बावजूद भी क्यों जलाते हैं पराली

पराली को समय से मृदा में न मिला पाने या अन्य उपयोग में न ले पाने की स्तिथि में, किसानों पर इसको ठिकाने लगाने का दवाब बन जाता है। क्योंकि दूसरी फसल के बीजारोपण के लिए किसानों के पास पर्याप्त समय नहीं बचता, मजबूरन किसानों को पराली के अवशेष में आग लगानी पड़ती है, जिससे वह शीघ्रता से दूसरी फसल का कार्य प्रारम्भ कर सकें। पंजाब में पराली जलाने से सम्बंधित काफी मुक़दमे दर्ज होते आये हैं, जिसकी मुख्य वजह यही है।